Thursday, March 15, 2018

पटना: कवि सम्मेलन सह मुशायरा में मेरी प्रस्तुति 11 मार्च 2018 (लेख्य मंजूषा)

दिनांक 11 मार्च 2018 को साहित्य और समाज के प्रति जागरूक करती संस्था "लेख्य मंजूषा" की तरफ से शानदार "कवि सम्मेलन सह मुशायरा" आयोजित किया गया जिसमें संस्था ने एक से बढ़कर एक अतिथियों को आज मंच दिया जिनमें मुख्य अतिथि के रूप में स्वतंत्रता सेनानी तथा जाने माने कवि श्री प्रभात सरसीज, श्री भगवती प्रसाद द्विवेदी, श्री नीलांशु जी, संस्था की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव, ई.श्री भूपेंद्र नाथ सिंह तथा डॉ. सतीशराज पुष्करणा ने दीप प्रज्वलित कर उद्घाटन किया।
मुख्य अतिथि स्वतंत्रता सेनानी तथा जाने माने कवि श्री प्रभात सरसीज जी ने संस्था की प्रशंसा की और कहा कि संस्था अपनी अलग पहचान बना चुकी है जिसमें बहुत अच्छे रचनाकार हैं। अध्यक्षा ने कहा कि संस्था एक परिवार की तरह है। श्री पुष्करणा जी ने कहा कि संस्था बहुत अच्छे कवियों, रचनाकारों, लेखकों के साथ लेखन विधा के हर क्षेत्र में अच्छा योगदान दे रही है अतः जल्द ही भारत में बड़ा मुकाम हासिल करेगी।

कार्यक्रम में कवियों ने अपनी एक से बढ़कर एक रचना का पाठ कर लोगों को आनंदित किया।

कार्यक्रम की शुरुआत में देश के शहिदों के लिए एक मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की गई और संजय कुमार'संज'ने कहा कि आज उनकी वजह से हम यहां खुशी से कार्यक्रम कर रहे हैं तो देशभक्ति के लिए क्यूं किसी खास दिन का इंतजार करना।

"हो चाहे कितना भी जोर बाजु-ए-कातिल में,
हर सिकंदर के लिए पोरस बन जाओ साथियों"
पढ़कर कवि संजय कुमार 'संज' ने लोगों में देशभक्ति का जोश भर दिया।
बागी जी ने बाल-विवाह के उपर बहुत खुबसूरत भोजपुरी में व्यंग्य गीत सुनाया कि भईलऽ विवाह कमात नइखऽ काहें, घर हीं में रहेल कहीं जात नईख काहें ।

श्रीमती कृष्णा सिंह ने जब सुनाया कि देखो झुमता बसंत आ गया तो मस्ती छा गई। श्री विश्वनाथ वर्मा ने हास्य रस से सभी को खुब हंसाया।
वीणाश्री हेम्ब्रम ने सुनाया कि जब तक रहते हो सब संवरा सा रहता है, जाने के बाद तुम्हारे बिखर जाता है सबकुछ।'

मुख्य अतिथि श्री प्रभात सरसीज ने पढ़ा कि औरत ही है जो जिंदगानी को खुश रखती है, डॉ सुमेधा पाठक ने कविता में महाभारत काल से औरतों की बेबसी को दर्शाया, हेमंत दास हिम जी ने सुनाया कि 'आपकी है नाराजगी, मेरा हौसला है, यूं ही डटे रहने में दोनों का भला है।' ज्योति स्पर्श ने शेर पढ़ा कि 'कहां चली जाती हो, लौट आओ आती सांसों की तरह।' सुनील कुमार ने सुनाया कि 'बे-सबब आजकल करीब आता कौन है, यूं ही तेरी हां में हां मिलाता कौन है।' सिद्धेश्वर जी ने सुनाया कि खुशी का मुझको एहसास नहीं, मेरी ही जिंदगी मेरे पास नहीं।' शमा कौसर जी ने सुनाया कि छोड़ कर वतन अपना चल दिए कहां लोगों, जब यहां हिमालय है।' मधुरेश जी ने बड़ा मजेदार और लयबद्ध गीत सुनाया कि जादू की इक झप्पी लाए जीवन में प्यार, कब से कर रहा है दिल तेरा इंतज़ार।'

संगीता गोविल ने पढ़ा 'देश के नौजवानों समय पुकार रहा है, आज शत्रु द्वार खड़ा ललकार रहा है ।' एकता कुमारी ने पढ़ा 'एक पहेली मैं पूछती हूँ तुम से बताओ तो जानूँ'। नेहा नूपुर ने सुनाया कि परंपराओं के पेंग में घिसती नित ख्वाहिशों की रस्सियां, संकरी सीढ़ियों पर सरकते सरकते।'  राजमणि मिश्र ने सुनाया कि 'दुख तेरा हो कि दुख मेरा हो, परिभाषा एक है।' पुष्करणा जी ने सुनाया कि धुप भागती जा रही है और मेरी छाया धुप को पकड़ने के लिए।'

एकाकीपन चुभन से बुरी लगती जिन्दगी
तलाश कंधे चार नारकीय सहती जिन्दगी
मिलते क्या जो दर्द समझते बेदर्द न होते
चुनिंदा सुनंदा को स्वनंदा करती जिन्दगी
तुला-तंतु में वामा यादों-वादों गमों उलझी
रहमत-ए-खुदा को जुदा करती जिन्दगी
विभा रानी श्रीवास्तव ने सुनाया

सदस्यों में प्रो. डॉ. सुधा सिन्हा, ज्योति मिश्रा, प्रेमलता सिंह, तथा नेहा नारायण सिंह ने भी अपनी कविता प्रस्तुत किए।

अन्य अतिथियों में लता पराशर, संजय सिंह, विश्वनाथ वर्मा, सिद्धेश्वर तथा पिंकी सिन्हा ने भी अपनी रचनाएं प्रस्तुत कर काफी संख्या में उपस्थित श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

अतिथियों ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम से जीवन की आपाधापी में लोगों को सुकून मिलता है।

प्रवासी सदस्यों की रचनाएं भी उपस्थित सदस्यों द्वारा प्रस्तुत की गई जिनमें गिन्नी, कमला अग्रवाल, पूनम देवा, शशि शर्मा खुशी, पम्मी सिंह, धरणीधर मणि, सत्या शर्मा कीर्ति प्रमुख रहें।

मंच संचालन वीणाश्री हेम्ब्रम और मो. नसीम अख्तर ने संयुक्त रूप से किया।

(लेख्य मंजूषा, पटना की प्रस्तुति)





















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