Sunday, September 1, 2019

(यह पोस्ट 31.08.2019 को लिखा था क्योंकि 31 अगस्त अमृता प्रीतम जी का जन्म दिवस है।)
अमृता  प्रीतम जी के लिए क्या कहा जाए। उनके जन्मदिवस पर उनकी ही रचनाओं के नामों को लेकर जो भी कहना चाहता हूं उस उद्गार को ऐसे प्रकट किया है कि;
🌹 शब्दांजलि 🌹
उसने एक दुनिया बनाई
और एक दिन चली गई
अपनी रचनाओं की महक के साथ
स्याही और कलम
उड़ेल दिया था उसने
और रचती रही थी
शब्दों की दुनियां से
अनेक आकृतियां
गुजरांवाला से पार कर
सीमाओं के बाहर दिल्ली तक
इश्क़ का भी बंटवारा हो गया था अब
पर जिस्म की छुअन में ही इश्क़ हो
जरूरी तो नहीं
ख़ामोश इश्क़ भी पलता है चुपचाप
एक ही छत के नीचे
अलग-अलग कमरों में
और कोरे कागज पर
उतार दिया था उसने
कहानियों के आंगन में
कहानियॉ॑ जो कहानियॉ॑ नहीं हैं
वो तो हैं सागर और सीपियां
एक औरत का दृष्टिकोण
शायद प्रीतम का मुहब्बतनामा
हां, इमरोज़ के पीठ पर
उंगलियों से साहिर लिखना
ऐसा नहीं कि
कोई नहीं जानदॉ॑
धरती सागर ते सीपियां
पाक की वादियां या
दिल्ली दियॉ॑ गलियॉ॑
जानदे ते सब हैं
उनहॉ॑ दी कहानी
जिसने एक थान बुना था
कच्चे कपड़ों पर
कच्चे आंगन में और
बंद दरवाज़ा भी नहीं था
उसकी कच्ची सड़क और
पक्की हवेली के
साहित्य की चोली सी ली उसने
और उसकी महक
रह गई दुनिया में
कस्तूरी सा एक सफरनामा बनकर
साहित्यिक आकाश में स्पंदित
और जब आया बुलावा
तो अदालत में ख़ुदा की
पहुंच गई अग दी लकीरों से होती
इक शरीर इक शहर दी मौत हुई
पर अमर हुई अमृता प्रीतम
जिसने पी लिया था एक घूंट चांद का
©संजय संज

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