होली पर एक रचना:
कविता: अबकी होली ऐसी हो
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अमन कबुतर उड़-उड़ आए
सरहद के सब भेद मिटाए
अबकी होली ऐसी हो
जात धर्म को दूर भगाएं
सबकी होली ऐसी हो
दुश्मन को भी गले लगाएं
सबकी सबसे बात कराए
अब की होली ऐसी हो
रंग बिरंगे अरमान जगाएं
सबकी होली ऐसी हो
मन की बात जनता सुनाए
खाते में लाखों आ जाएं
अब की होली ऐसी हो
हर घर में विकास आ जाए
सबकी होली ऐसी हो
मंदिर मस्जिद छोड़ के आएं
मन की गांठ तोड़ के आएं
अब की होली ऐसी हो
सब नाचें झुमे गाएं
सबकी होली ऐसी हो
रंगों के घन उड़ते जाएं
मुहब्बत का बस जहां बनाएं
अबकी होली ऐसी हो
संज खुशी के गीत सुनाए
सबकी होली ऐसी हो
© संजय कुमार'संज'
पटना
कविता: अबकी होली ऐसी हो
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अमन कबुतर उड़-उड़ आए
सरहद के सब भेद मिटाए
अबकी होली ऐसी हो
जात धर्म को दूर भगाएं
सबकी होली ऐसी हो
दुश्मन को भी गले लगाएं
सबकी सबसे बात कराए
अब की होली ऐसी हो
रंग बिरंगे अरमान जगाएं
सबकी होली ऐसी हो
मन की बात जनता सुनाए
खाते में लाखों आ जाएं
अब की होली ऐसी हो
हर घर में विकास आ जाए
सबकी होली ऐसी हो
मंदिर मस्जिद छोड़ के आएं
मन की गांठ तोड़ के आएं
अब की होली ऐसी हो
सब नाचें झुमे गाएं
सबकी होली ऐसी हो
रंगों के घन उड़ते जाएं
मुहब्बत का बस जहां बनाएं
अबकी होली ऐसी हो
संज खुशी के गीत सुनाए
सबकी होली ऐसी हो
© संजय कुमार'संज'
पटना
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