Saturday, January 19, 2019

नए वर्ष के नयी उमंगों एवं जाड़े की गुनगुनी धूप की समरसता के बीच साहित्य और समाज को समर्पित और पंजीकृत संस्था "लेख्य-मंजूषा" की मासिक गोष्ठी सह काव्यपाठ का आयोजन दिनांक 13 जनवरी 2019 को अपराह्न 2 से संध्या 6 बजे तक बोरिंग रोड, पटना में हुआ।

मंचासीन अतिथियों में श्रीमती कृष्णा सिंह, जिन्होंने गोष्ठी की अध्यक्षता की, डॉ. कल्याणी कुसुम सिंह तथा श्री विश्वनाथ वर्मा जी उपस्थित थे। इस मासिक गोष्ठी के विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूदगी थी श्री निलांशु रंजन जी की जो संस्था के द्वारा हाल के दिनों में आयोजित पद्य प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल के सदस्य भी थे। वहीं संस्था की अध्यक्ष श्रीमती विभा रानी श्रीवास्तव जी की अनुपस्थिति में उनके द्वारा मनोनीत संस्था की अध्यक्षता संस्था के उपाध्यक्ष श्री संजय कुमार 'संज' ने की।

श्री संजय कुमार ‘संज’ ने संस्था के कार्यकलापों की जानकारी देते हुए बताया कि "दो वर्ष पूर्व 4 दिसम्बर 2016 को संस्था की औपचारिक स्थापना हुई थी और उसके ठीक दो वर्ष के पश्चात 10 दिसम्बर 2018 को संस्था का पंजीयन भी हो गया जो संस्था व इसके सदस्यों के लिए गौरव की बात है। संस्था की इस उपलब्धि का मुख्य श्रेय संस्था की अध्यक्ष श्रीमती विभा रानी श्रीवास्तव जी को जाता है जो आज इस मौके पर अपरिहार्य कारणों से उपस्थित तो नहीं हो पाई हैं परन्तु जिन्होंने अपनी शुभकामनाएं व हम सब को अपना स्नेहाशीष प्रेषित किया है।"

नववर्ष और संस्था के हालिया पंजीकरण की दोहरी खुशी के मध्य मासिक गोष्ठी सह काव्यपाठ का आयोजन बेहद हर्षोल्लास व आनंदमय वातावरण और ज्योति स्पर्श जी के मधुर आतिथ्य में हुआ। सभी मंचासीन अतिथियों ने कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए। उन्होंने उच्चारण, व्याकरण एवं प्रस्तुतिकरण के तरीके इत्यादि पर ध्यानाकर्षित किया। संस्था के द्वारा पिछले दिनों एक पद्य प्रतियोगिता आयोजित की गई थी जिसमें श्री निलांशु रंजन जी भी एक निर्णायक थे और इन्होंनें सभी रचनाओं को बहुत बारीक़ी से परखा और सटीक समीक्षा की थी। उन्होंने आज पुनः उनपर व्यापक प्रकाश डाला।

संस्था के नए सदस्यों ने भी अपनी प्रस्तुति दी। सदस्यों द्वारा (प्रवासी) अस्थानीय सदस्यों की रचनाएं भी पढ़ी गई। सभी सदस्यों ने एक से बढ़ कर एक कविता, ग़ज़ल, शेरों- शायरी से खूबसूरत समां बांधा। तालियों और वाह-वाह से महफ़िल गूंजती रही।

सदस्यों की काव्य प्रस्तुति का सार इस प्रकार है:-

कार्यक्रम के शुरुआत में सुबोध कुमार सिन्हा ने मां को समर्पित कविता प्रस्तुत की “गुँथे आटे की नर्म-नर्म लोइयाँ जब-जब, हथेलियों के बीच हो गोलियाती।“

सुशांत सिंह ने अपनी रचना पढ़ी,
“प्रेम का प्रतीक हमसे, तुम क्या पूछते रहते हो
जब की हर जुबां से, राधे-कृष्ण तुम जपते रहते हो”

अमृता सिन्हा ने नारी पर केंद्रित एक अच्छी रचना सुनाई कि
"आख़िर कब तक देते रहें हम
तुम्हारे सवालों के जवाब"

वीणाश्री हेम्ब्रम ने जिन्दगी की सच्चाई पर आधारित एक बेहतरीन कविता सुनाई,
"ये जो ज़िन्दगी है बस ऐसी ही है, न किसी के आने से चलती है
न किसी के जाने से रुकती है, ये कटती है और बस कटती है।"

प्रेम और गंभीर कविताओं के बीच मधुरेश नारायण जी ने एक बेहद भावुक गीत सुनाया तो लगा कि सभी जैसे उसमें खो से गये,
"हसरत भरी निगाहें उठती है बार-बार
कब से कर रहा है दिल तेरा इंतज़ार ।"

सुनील कुमार जी का दर्द तरन्नुम में उनकी उम्दा ग़ज़ल से कुछ इस कदर छलका कि… “खुशी की चाह में हमने लिखे कई नगमें/ मगर वो गीत मुहब्बत के गा नहीं पाए….” और महसूस हुआ कि जैसे दर्द-ए-बयाँ महफ़िल लूट ले गयी।

ग़ज़ल के दौर में मो॰ नसीम अख्तर जी ने भी एक बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति दी और मंच से उनकी इस बेहतरीन ग़ज़ल के मकते के लिए दाद भी मिली।

शाईस्ता अंजुम ने अपनी प्रस्तुति दी,
“वक्त गुजर गया, दूरियां बढती गई
जिन्दगी की शाम यूं ही ढलती गई”

सीमा रानी ने एक भावनात्मक कविता पढ़ी,
“मैनें देखा है कुछ मासूमों को कचरा बिनते हुए।“         
प्रभास ने कविता के माध्यम से जीवन के भटकाव को दर्शाया
“निकले थे कहीं और पहुँचे हैं कहीं,
मंज़िलों के सफ़र में हर रास्ते पर भटकना याद आता है।“

“बनना था मुझे भी अमृता ..
थी मुहब्बत मुझे भी साहिर से ..”
इन पंक्तियों से के माध्यम से ज्योति मिश्रा जी ने अमृता प्रीतम जी को अपनी कविता समर्पित की।

मीरा प्रकाश ने जिंदगी के रंगों को दर्शाती अपनी कविता का पाठ किया कि
“ये जिंदगी है जनाब, कई रंग दिखाएगी।
कभी रुलाएगी, कभी हंसाएगी।“

नये सदस्य बने सुधांशु कुमार ने सुनाया "मेरे अरमानों का कारवां था, उसके जहां को गुलिस्ता बनता "

कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी को मात देने वाली और मजबूत इरादों वाली रचनाकार महिमा श्री ने अपनी भी अपनी बेहतरीन काव्य प्रस्तुति प्रस्तुति दी।

इसके अतिरिक्त संस्था के प्रवासी सदस्यों अर्थात पटना से बाहर रहने वाले सदस्यों का पाठ भी यहां उपस्थित सदस्यों के द्वारा करवाया गया और उसका वीडियो भी बनाया गया, जो सभी सदस्यों की समानता और महत्व को दर्शाता है। इस कड़ी में अभिलाष दत्ता ने अंकिता कुलश्रेष्ठ (आगरा), सुबोध जी ने राजेंद्र पुरोहित (राजस्थान), मो॰ रब्बान अली ने मीनू झा (पानीपत), मीरा प्रकाश ने कमला अग्रवाल (इंदिरापुरम, गाजियाबाद), प्रतिमा सिन्हा ने शशी शर्मा खुशी (राजस्थान), सीमा रानी ने कल्पना भट्ट (भोपाल) एवं मो. नसीम अख्तर ने पम्मी सिंह 'तृप्ति' (नई दिल्ली) की रचनाओं का पाठ किया।

और अंत में संजय कुमार 'संज' ने अपनी एक नई और साम्यवादी कविता, 'दगा' प्रस्तुत किया कि
"रास्ता जिसे बनाने में लगे थे ऐसे ही,
न जाने कितने हाड़ मांस के टुकड़े"

सभी अतिथि कवियों ने भी अपनी-अपनी रचनाओं का पाठ किया और सभी को अपनी शुभकामनाएं भी दीं। अतिथियों में श्रीमती कृष्णा सिंह जी ने सामाजिक विषय पर आधारित एक बेहतरीन कविता सुनाया। श्रीमती कल्याणी कुसुम ने भी अपनी रचना सुनाई।हास्यावतार की उपाधि से विभूषित व ख्यात श्री विश्वनाथ वर्मा जी ने बहुत हंसाया गुदगुदाया और माहौल को ठहाकों से भर दिया।
मुख्य अतिथि श्री निलांशु रंजन जी ने एक मुहब्बत की एक बेहतरीन नज़्म प्रस्तुत की।

कार्यक्रम का बेहतरीन मंच संचालन मो. नसीम अख़्तर ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन श्रीमती वीणाश्री हेम्ब्रम ने किया जिसमें अतिथियों के अलावा संयुक्त रूप से आयोजन करने के लिए बिहार न्यूज को विशेष धन्यवाद प्रेषित किया गया। एक खुशनुमे माहौल में गोष्ठी सह काव्यपाठ सम्पन्न हुआ।

रिपोर्ट: संजय कुमार 'संज'