Thursday, September 5, 2019

शिक्षक दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में मैं

✍️ शिक्षक दिवस 🙏
आज कमलेश्वरी प्रसाद टीचर ट्रेनिंग कॉलेज बख्तियारपुर में शिक्षक दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में विद्यार्थियों और शिक्षकों से मिलकर, बातें करके, उनको सुनकर और संबोधित करते हुए बहुत अच्छा लगा। 😊

मैंने कहा कि मेरी पहली शिक्षक मेरी मां, दूसरे शिक्षक मेरे पिता जी, फिर मेरे सभी शिक्षक हैं और सभी का चरण वंदन है। 🙏

कॉलेज के संस्थापक एवं वरिष्ठ श्री कमलेश्वरी प्रसाद जी भी इस मौके पर उपस्थित रहे और उन्होंने कहा कि नदियां कभी अपना पानी नहीं पीतीं और वृक्ष कभी अपने फल नहीं चखते, ठीक ऐसे हीं शिक्षक भी होते हैं। ज्ञान भरी बातें उन्होंने कही। कॉलेज के सचिव शिवचंद्र प्रसाद जी ने भी छात्रों को शुभकामनाएं दी।

भारतरत्न डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के जन्मदिवस पर आयोजित शिक्षक दिवस कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन एवं श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए की गई। 💐

🎙️मुख्य अतिथि के तौर पर मैंने भी अपनी बातें कही कि शिक्षा सभी के लिए समान और सुलभ होनी चाहिए। शिक्षा आज से ज्यादा भविष्य के लिए आवश्यक है ताकि हम भविष्य की चुनौतियों का ना सिर्फ सामना कर सकें बल्कि उनसे जीत भी सकें।

एक अच्छे शिक्षक का पुनीत कार्य है एक सच्चा चरित्रवान कर्मठ नागरिक बनाने की कोशिश करना, जीवनयापन की कला में दक्ष करना, व्यवसायिक कुशलता यानी उद्यमशील बनाना तथा व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास करना।

छात्र भी आज बहुत उत्साहित थे और उन्होंने भी अपनी प्रस्तुति दी। छात्राओं ने स्वागत गीत गाए। शिक्षकों ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए। शिक्षकों के सम्मान में आयोजित इस कार्यक्रम के लिए सभी को हार्दिक बधाई एवं छात्रों को शुभकामनाएं।

कॉलेज के सचिव शिवचंद्र प्रसाद जी को विशेष धन्यवाद जिन्होंने मुझे आईडीबीआई बैंक के शाखा प्रमुख के अतिरिक्त एक कवि तथा एक मोटीवेशनल स्पीकर के रूप में भी आमंत्रित किया। (5 सितंबर 2019)
🙏 सभी का धन्यवाद

















🏆 राजभाषा शील्ड पुरस्कार 2018-19 🏆
जिंदगी के पन्नों में से कुछ सबसे खास दिनों में आज का दिन वैसे भी बहुत अहमियत रखता है मेरे लिए और आज पुनः एक खुशी मिली मुझे जब बैंक के राजभाषा विभाग द्वारा "राजभाषा शील्ड पुरस्कार 2018-19" में मेरी शाखा को "श्रेष्ठता पुरस्कार" प्राप्त हुआ। यह मेरा एक स्वप्न भी था कि जब मैं शाखा प्रमुख बनूं तो मेरी शाखा हिंदी में ऐसा काम करे कि शील्ड पुरस्कार प्राप्त हो और आईडीबीआई बैंक, प्रधान कार्यालय, मुंबई जा कर बैंक के हमारे प्रमुख यानी सीएमडी सर के द्वारा पुरस्कार प्राप्त करूं। और आज मुझे 20 सितंबर 2019 को मुंबई आने का आमंत्रण मिला। शाखा के सदस्यों को बहुत बधाई। बैंक के पदाधिकारियों को भी बहुत धन्यवाद जिन्होंने इस लायक समझा। माता-पिता को समर्पित तथा प्रभु को बारंबार प्रणाम। (4 सितंबर 2019 का पोस्ट)

फेसबुक पर 4 सितंबर 2019 का पोस्ट

ओपन माइक पर पिछले बुधवार को हुए पक्ष और विपक्ष के बहस की प्रतिक्रिया के रूप में आज के हिन्दुस्तान में मेरी बेबाक राय..

☝️ सर्वप्रथम यह समझना होगा कि ओपन माइक और साहित्य दो अलग-अलग चीज है परंतु लोग इसको समझ नहीं रहे। ओपन माइक एक व्यवसायिक व्यवस्था है जिसे कुछ रेस्तरां या अन्य व्यवसायिक केन्द्र तथा इंटरनेट पर आपके विचारों को उक्ति (quotes) के रूप में प्रदर्शित करके रातों-रात बड़े कवि या दार्शनिक बनने के झूठे सपनों को बेचने का काम करने वाली कंपनियां हैं।
क्या ये साहित्य है? कोई भी साहित्य अपनी खास विधा तथा अनुशासन से बनता है और ओपन माइक में कोई अनुशासन नहीं। कुछ नवोदित और ओपन माइक के हिमायती कह रहे हैं कि कवि सम्मेलन की अंदरूनी राजनीति पर यह चोट है तथा मठाधीशों को जवाब। मैं कहना चाहता हूं कि कोई भी प्रतिभा कभी भी किसी की मोहताज नहीं रही और खासकर साहित्य तो कभी भी नहीं क्योंकि सार्थक साहित्य में अभी भी बहुत जगह है कुछ करने के लिए। आज के बदलते युग और ग्लोबल जमाने में यह कहना हास्यास्पद है कि किसी को मंच नहीं मिल रहा। आज बहुत सारे मंच हैं जहां नवोदित रचनाकारों को दिल खोलकर मौका दिया जा रहा है। अकेले पटना में बहुत सारे मंच हैं जो मौका दे रहे हैं बस शर्त यह कि रचना अपनी हो और साहित्यिक हो। वरिष्ठ साहित्यकार नवांकुरों को लाइट हाउस की तरह रास्ता दिखाने का कार्य करते हैं जो आवश्यक भी है।

वास्तव में ओपन माइक पर साहित्य छोड़कर सब कुछ हो रहा है जैसे इश्क़ मुहब्बत और इश्क में नाकाम शायरी की बातें, चुटकुले, एक्टिंग, स्टोरी टेलिंग, गीत गाना, रैप आदि। कोई बताए रैप कौन सा साहित्य है? और हां मज़ेदार बात तो यह है कि ऐसे ओपन माइक्स में शामिल होने के लिए पैसे भी देने पड़ते हैं जो कि पुरी तरह मामले को व्यवसायिक बनाता है। अपने पैसे से अपना माला खरीदकर अपने आप को पहनाना कौन सा साहित्य है?

☝️परंतु हां, ओपन माइक कला के लिए एक नई व्यवस्था हो सकती है परन्तु तब भी मार्गदर्शन के लिए गुणी लोगों की आवश्यकता होगी।

साहित्य में योगदान और आनेवाली पीढ़ी के लिए एक बेहतर संदेश आप सिर्फ गंभीर लेखन, उत्कृष्ट रुचि और जज़्बा से दे सकते हैं। शालीनता एवं सहनशीलता बहुत आवश्यक है एक साहित्यकार के लिए। क्योंकि हम साहित्य लिखते नहीं बल्कि रचते और गढ़ते हैं, आनेवाली पीढ़ियों के लिए।

☝️इसलिए मंच कोई भी हो परंतु गुणी साहित्यकारों की देखरेख में सिखना, गुण दोष जान समझ आगे बढ़ना और तब मेहनत से प्रसिद्धि हासिल करना हीं श्रेयस्कर होगा।

परंतु आज बाजारवाद सभी क्षेत्रों पर हावी है इसलिए यह तुरत फुरत वाली प्रसिद्धि आने वाले दिनों में बहुत आगे जाने वाली है इसमें कोई संदेह नहीं परंतु साहित्य का कितना नफा और नुक्सान होने वाला है यह तो वक्त हीं बताएगा।

🙏

Sunday, September 1, 2019

एक पुरानी तस्वीर एक नई रचना के साथ कि
आमादा है गर वो अदावत करेंगे..
हम भी कसम से बगावत करेंगे..
©संजय संज


आमादा= तैयार / तत्पर
अदावत= शत्रुता
बगावत= विद्रोह

''तू किसी रेल सी गुज़रती है, मैं किसी पुल सा थरथराता हूं'

फिल्म मसान (2015) और आमिर खान फेम 'सत्यमेव जयते' में कवि दुष्यंत कुमार रचित पंक्तियां 'सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं, सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए'  को इसलिए इस्तेमाल किया गया था क्योंकि हिन्दी साहित्य की दुनिया में जब कठिन कविताओं और नामचीन कवियों का बोलबाला था तब इस कालखंड में हिन्दी के एक अलहदा कवि और गजलकार ने साहित्यिक दुनिया में एक अलग पहचान बनाई जिसे "दुष्यंत कुमार" कहते हैं और आज इनकी जयंती है।

1 सितंबर 1933, बिजनौर ज़िला, उ•प्र• में जन्मे दुष्यंत कुमार उन महान कवियों में से एक हैं, जिनकी ना सिर्फ हिन्दी पर मजबूत पकड़ थी बल्कि उर्दू की भी अच्छी जानकारी भी। इन्होंने उर्दू ग़ज़ल को हिन्दी कलेवर में प्रस्तुत किया और शायद यही वजह है कि उन्हें देश का पहला हिन्दी ग़ज़ल लेखक भी कहते हैं।

☝️ एक बात बता दूं कि दुष्यंत कुमार ने साधारण शब्दों और आम बोलचाल की भाषा में लिखना शुरू किया जिसकी वजह से वह लोगों को काफी पसंद आए और अपनी लेखनी पर वह स्वयं कहते थे कि, 'मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ, वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ' । यही इनकी खासियत रही ।

☝️ यह भी बहुत खास बात रही कि उन्होंने सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ भी बहुत लिखा। उन्होंने दर्द, प्यार, मुहब्बत, देशभक्ति, देश, यथार्थ लिखा। लोगों को जगाती और झकझोरती रचनाओं को लिखा। भले सरकार से दोस्ती नहीं हुई परंतु लोगों ने इनकी रचनाओं का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। हर लेखक की एक कालजई रचना होती है तो किसे ये पंक्तियां याद नहीं कि 'हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए' ।

🤩 मैं भी चाहता हूं कि उनकी तरह कविताओं के अतिरिक्त हिन्दी कलेवर युक्त ग़ज़ल लिख सकूं जिसका लोहा उस दौर के हर बड़े शायर और कवियों ने माना था ।

🙏 तो आइए, आज उनके जन्मदिन के अवसर पर उनकी कुछ खास कविताओं और ग़ज़लों के अंशों को देखिए;

एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ
तू किसी रेल सी गुज़रती है
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ
मैं तुझे भूलने की कोशिश में
आज कितने क़रीब पाता हूँ

ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो
अब कोई ऐसा तरीक़ा भी निकालो यारो
कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो

ये ज़बाँ हम से सी नहीं जाती
ज़िंदगी है कि जी नहीं जाती
एक आदत सी बन गई है तू
और आदत कभी नहीं जाती
मुझ को ईसा बना दिया तुम ने
अब शिकायत भी की नहीं जाती

वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है
माथे पे उस के चोट का गहरा निशान है
फिस्ले जो उस जगह तो लुढ़कते चले गए
हम को पता नहीं था कि इतना ढलान है

इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है
एक चिनगारी कहीं से ढूँढ लाओ दोस्तों
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है

ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दोहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था आप को धोखा हुआ होगा
यहाँ तक आते-आते सूख जाती है कई नदियाँ
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा

💝 उर्दू ग़ज़ल को हिन्दी माटी से निर्मित कुछ शेर देखिए कि 👇

कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हर एक घर के लिए
कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए

यहाँ दरख़तों के साये में धूप लगती है
चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए

न हो कमीज़ तो पाँओं से पेट ढँक लेंगे
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए

ख़ुदा नहीं न सही आदमी का ख़्वाब सही
कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिए

वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता
मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिए

तेरा निज़ाम है सिल दे ज़ुबान शायर की
ये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए

जिएँ तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले
मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिए

😍 और अब उनकी सबसे चर्चित ग़ज़ल 😍

🔥 हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए 🔥

हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
आज ये दीवार पर्दों की तरह हिलने लगी
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
हर सड़क पर हर गली में हर नगर हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए
सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मिरा मक़्सद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए

धन्यवाद 🙏
संजय संज

(यह पोस्ट 31.08.2019 को लिखा था क्योंकि 31 अगस्त अमृता प्रीतम जी का जन्म दिवस है।)
अमृता  प्रीतम जी के लिए क्या कहा जाए। उनके जन्मदिवस पर उनकी ही रचनाओं के नामों को लेकर जो भी कहना चाहता हूं उस उद्गार को ऐसे प्रकट किया है कि;
🌹 शब्दांजलि 🌹
उसने एक दुनिया बनाई
और एक दिन चली गई
अपनी रचनाओं की महक के साथ
स्याही और कलम
उड़ेल दिया था उसने
और रचती रही थी
शब्दों की दुनियां से
अनेक आकृतियां
गुजरांवाला से पार कर
सीमाओं के बाहर दिल्ली तक
इश्क़ का भी बंटवारा हो गया था अब
पर जिस्म की छुअन में ही इश्क़ हो
जरूरी तो नहीं
ख़ामोश इश्क़ भी पलता है चुपचाप
एक ही छत के नीचे
अलग-अलग कमरों में
और कोरे कागज पर
उतार दिया था उसने
कहानियों के आंगन में
कहानियॉ॑ जो कहानियॉ॑ नहीं हैं
वो तो हैं सागर और सीपियां
एक औरत का दृष्टिकोण
शायद प्रीतम का मुहब्बतनामा
हां, इमरोज़ के पीठ पर
उंगलियों से साहिर लिखना
ऐसा नहीं कि
कोई नहीं जानदॉ॑
धरती सागर ते सीपियां
पाक की वादियां या
दिल्ली दियॉ॑ गलियॉ॑
जानदे ते सब हैं
उनहॉ॑ दी कहानी
जिसने एक थान बुना था
कच्चे कपड़ों पर
कच्चे आंगन में और
बंद दरवाज़ा भी नहीं था
उसकी कच्ची सड़क और
पक्की हवेली के
साहित्य की चोली सी ली उसने
और उसकी महक
रह गई दुनिया में
कस्तूरी सा एक सफरनामा बनकर
साहित्यिक आकाश में स्पंदित
और जब आया बुलावा
तो अदालत में ख़ुदा की
पहुंच गई अग दी लकीरों से होती
इक शरीर इक शहर दी मौत हुई
पर अमर हुई अमृता प्रीतम
जिसने पी लिया था एक घूंट चांद का
©संजय संज